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Title: Geography notes
Description: Hii my self dinesh chauhan

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संसाधन
वे पदार्थ या वस्तुएं जिनमें मानवीय आवश्यकताओं की पूर्तथ करने की क्षमता हो उन्हें संसाधन कहते हैं। ककसी भी
दे श के ववकास के लिए संसाधनों का होना अत्यधधक आवश्यक है। भारत ववश्व के संसाधन संपन्न दे शों की श्रेणी में
शालमि ककया िाता है । यहां प्रायद्वीपीय पठार अत्यंत प्राचीन भूखंड है जिसमें िगभग सभी प्रकार के खर्नि पाए
िाते हैं िेककन यहां खर्निों का ववतरण असमान है ।
भारत के खननज संसाधन
भारत प्रचरु खर्नि-र्नधध से सम्पन्न है। हमारे दे श में 100 से अधधक खर्निों के प्रकार लमिते हैं। इनमें से 30 खर्नि
पदार्थ ऐसे हैं जिनका आधर्थक महत्त्व बहुत अधधक है। उदाहरणस्वरूप कोयिा, िोहा, मैगनीज़, बॉक्साइट, अभ्रक
इत्यादद। दस
ू रे खर्नि िैसे फेल्सपार, चूनापत्र्र, डोिोमाइट, जिप्सम इत्यादद के मामिे में भारत में इनकी जस्र्र्त
संतोषप्रद है। परन्तु पेट्रोलियम तर्ा अिौह धातु िैसे तााँबा, िस्ता, दटन, ग्रेफाइट इत्यादद में भारत में इनकी जस्र्र्त
संतोषप्रद नह ं है । अिौह खर्नि वे हैं जिनमें िौह तत्व नह ं होता है। हमारे दे श में इन खर्निों की आन्तररक मााँगों
की आपूर्तथ बाहर के दे शों से आयात करके की िाती है।
खननज पदार्थों एवं ऊजाा संसाधनों का स्र्थाननक ववतरण
भारत में खर्नि एवं ऊिाथ संसाधनों का ववतरण बहुत ह असमान है। खर्नि संसाधनों की उपजस्र्र्त कुछ ववलशष्ट
भू-वैज्ञार्नक संरचनाओं से संबंधधत होती है। िैसे कोयिा के र्नक्षेप गोन्डवाना संस्तर में लमिते हैं। इसी प्रकार से
धारवाड़ एवं कुडप्पा तंत्र में भारत के प्रमुख धाजत्वक खर्नि िैसे िोहा ,ताम्बा, सीसा, िस्ता इत्यादद और प्रमुख
अधाजत्वक खर्नि िैसे चूनापत्र्र, डोिोमाइट, जिप्सम, अभ्रक इत्यादद कुडप्पा एवं ऊपर ववन्धयन तंत्र में लमिते
हैं।
अधधकांश क्षेत्र िो खर्नि सम्पदा से सम्पन्न हैं, वे प्रायद्वीपीय पठार क्षेत्रों में संकेजन्ित हैं। इस पठार भाग में
खर्नि सम्पदा की तीन प्रमुख पट्दटयााँ स्पष्ट रूप से धचजन्हत की िा सकती हैं।
पूवी पठार - इनके अन्तगथत छोटानागपुर के पठार, उड़ीसा के पठार आते हैं। इस पट्ट के अन्तगथत खर्नि-सम्पदा
ववशेषकर धातु कमथ उद्योगों में उपयोग आने वािे खर्निों के ववशाि भण्डार हैं। इनमें से प्रमख
ु खर्नि जिनके बड़े
एवं ववपुि भण्डार पाए िाते हैं, वे हैं-िौह अयस्क, मैगनीि, अभ्रक, बॉक्साइट, चूनापत्र्र, डोिोमाइट इत्यादद। इस
क्षेत्र में कोयिे के ववशाि भण्डार दामोदर नद , महानद , सोन नद की घादटयों में उपिब्ध हैं। इस क्षेत्र में पयाथप्त मात्रा
में तांबा, यरू े र्नयम, र्ोररयम, फास्फेट िैसे खर्निों के भण्डार भी लमिते हैं।

दक्षक्षण पजश्चम पठार - इस क्षेत्र का ववस्तार कनाथटक पठार ,रॉयिसीमा तर्ा समीपस्र् तलमिनाडु के पठार क्षेत्र तक
है। यहााँ धाजत्वक खर्निों में िौह अयस्क, मैगनीि, बॉक्साइट के प्रचुर भण्डार के अिावा कुछ अधाजत्वक खर्निों के
भण्डार भी हैं। इस क्षेत्र में कोयिा नह ं लमिता। भारत के तीनों प्रमुख सोने की खदानें इसी क्षेत्र में जस्र्त हैं।
उत्तर-पजश्चम पठार - इस क्षेत्र का ववस्तार गुिरात के खम्बात की खाड़ी से आरं भ होकर रािस्र्ान के अरावि पवथत
श्रेणणयों तक है। पेट्रोलियम तर्ा प्राकृर्तक गैस के मुख्य भण्डार इस क्षेत्र में हैं। अन्य खर्निों के भण्डार र्ोड़े एवं
बबखरे हुए हैं। कफर भी तांबा, चााँद , सीसा एवं िस्ता के भण्डार तर्ा उनके खनन के लिये इस क्षेत्र को पूरे दे शभर में
िाना िाता है।
इन खर्नि पट्दटयों के अिावा ब्रह्मपत्र
ु नद घाट क्षेत्र प्रमख
ु पेट्रोलियम उत्पादक क्षेत्र हैं, िबकक केरि के तटवती
क्षेत्र भार खर्नियुक्त (रे डडयोधधथमता वािे) रे तों के लिये दे श में प्रलसद्ध हैं।
इन उपयुथक्त क्षेत्रों के अिावा दे श के अन्य भूभागों में खर्नि काफी कम मात्रा में व प्रकीणथ रूप में लमिते हैं
खननज ईंधन
ईंधन की गुणवत्ता से युक्त खर्निों में कोयिा, पेट्रोलियम, प्राकृर्तक गैस एवं रे डडयोधमी खर्नि शालमि हैं।
कोयला
भारत में कोयिा वाणणजययक ऊिाथ का प्रमुख स्रोत है। दे श के सभी कारखानों में ईंधन के रूप में तर्ा सभी तापववद्युत गह
ृ ों में एवं दे श के कुछ भागों में आि भी कोयिा, घरे िू-ईंधन के रूप में प्रयुक्त हो रहा है। इसका प्रयोग कच्चे
माि के रूप में रसायन एवं उवथरक कारखानों में तर्ा दै र्नक िीवन में उपयोग की िाने वाि हिारों वस्तुओं के
उत्पादन में ककया िाता है।
कोककं ग कोयिे की आवश्यकता की आपूर्तथ आयात द्वारा की िाती है । भारत में ऐसे प्रयासों को अधधक महत्त्वपूणथ
माना िाता है जिसके अन्तगथत ववद्यत
ु -ताप गह
ृ ों की उन्ह ं स्र्ानों पर स्र्ापना होती है िो या तो कोयिा-उत्पादक
क्षेत्र में हों या उसके समीपस्र् स्र्ान में आते हों। इन ताप गह
ृ ों में उत्पाददत ववद्युत ऊिाथ को सम्प्रेषण द्वारा दरू दराि के क्षेत्रों तक पहुाँचाया िाता है। कभी कोयिे की खपत का सबसे बड़ा उपभोक्ता भारतीय रे ि हुआ करता र्ा,
परन्तु डीिि एवं ववद्यत
ु के प्रयोग से भारतीय रे ि अब कोयिे का सीधा एवं प्रत्यक्ष खपत करने वािा ग्राहक नह ं
रहा।
कोयिे को गुणवत्ता के आधार पर र्नम्नलिणखत भागों में बांटा गया हैएंथ्रासाइट कोयिा-यह सवोत्तम कोयिा है इस में काबथन का प्रर्तशत 80 से 90% के बीच होता है भारत में यह िम्मू
कश्मीर के कािाकोट में पाया िाता है

बबटूलमनस कोयिा - यह भी उत्तम कोटथ का कोयिा है जिसमें काबथन का अंश 60 से 80% तक पाया िाता है। भारत में
उच्च कोदट की कोयिे में यह अधधक पाया िाता है झारखंड उड़ीसा और पजश्चम बंगाि, छत्तीसगढ़ में प्राप्त होता है
लिग्नाइट कोयिा-यह र्नम्न कोदट का कोयिा है जिसका र्नमाथण तत
ृ ीयक काि में हुआ । यह तलमिनाडु के नेवेि
में, कश्मीर के र्नचोम में ,गुिरात के उमरसर में मुख्य रूप से पाया िाता है। इस में काबथन का प्रर्तशत 40 से 60% के
बीच होता है
पीट कोयिा - यह सबसे र्नम्नतम कोदट का कोयिा है जिसमें 40% से कम काबथन पाया िाता है ,यह िकड़ी की तरह
ििता है इसमें धुआं ययादा होता है तापमान कम होता है ।
ववतरणः भारत में कोयिा दो प्रमुख क्षेत्रों में उपिब्ध है। पहिा क्षेत्र-गोन्डवाना कोयिा क्षेत्र कहिाता है तर्ा दस
ू रा
टरलशयर कोयिा क्षेत्र कहिाता है। भारत के कुि कोयिा भण्डार एवं उसके उत्पादनों का 95% गोन्डवाना कोयिा
क्षेत्रों से प्राप्त होता है तर्ा शेष टरलशयर कोयिा क्षेत्रों से लमिता है। गोन्डवाना कोयिा क्षेत्र गोन्डवाना काि में बनी
परतदार शैि समूहों के अन्तगथत अवजस्र्त हैं। इनका भौगोलिक ववतरण भी भू-वैज्ञार्नकी कारकों से र्नयंबत्रत है। यह
मुख्य रूप से दामोदर (झारखण्ड़- प
...
25% भी छत्तीसगढ़ एवं मध्य प्रदे श राययों से होता है। इन अयस्क के भण्डार बैिाडडिा की
पहाडड़यों में जस्र्त है । इसी प्रकार से अररडोंगर (बस्तर जििा) तर्ा दल्ि -रािहरा के पहाड़ी क्षेत्रों (दग
ु थ जििा) में पाए
िाते हैं।
दे श के कुि उत्पादन में गोवा में लमिने वािे िौह अयस्कों का योगदान महत्त्वपण
ू थ है । गोवा में िौह अयस्क की खदान
सीढ़ दार, खुिे व सुव्यवजस्र्त होते हैं तर्ा उत्खनन एवं उत्खर्नत अयस्कों को बाहर िमीन पर फेंकने की प्रणाि
पूर तरह यांबत्रकीय इंिीर्नयररंग द्वारा संचालित होती है। िगभग पूरा िौह अयस्क गोवा के मरमगाओ पोटथ से
र्नयाथत कर ददया िाता है। कनाथटक में सबसे मशहूर िौह अयस्क के र्नक्षेप , धचकमंगिरू जििे के बाबाबद
ू न के
पहाड़ी क्षेत्र लशमोगा ,,धचत्रदग
ु थ , बेल्िार , हस्पेट जििों में पाए िाते हैं।
आन्ध्र प्रदे श में िौह अयस्क के र्नक्षेप अनन्तपुर, खम्मम, कृष्णा, करनूि, कुडप्पा तर्ा नेल्िूर जििों में बबखरे एवं
र्छटपुट रूप में पाए िाते हैं। कुछ र्नक्षेप इसी रूप में तलमिनाडु, महाराष्ट्र एवं रािस्र्ान में भी लमिते हैं।

अब िौह अयस्कों के र्नक्षेपों का ववकास र्नयाथत को ववशेष ध्यान में रखकर ककया िाता है । िैसे बैिाडडिा एवं
रािहरा (छत्तीसगढ़) के िौह अयस्कों के र्नक्षेपों तर्ा उड़ीसा के ककरुबुरू खदानों से िौह अयस्कों का उत्पादन सीधे
र्नयाथत के लिये ककया िाता है । िापान, रोमार्नया एवं चेकोस्िोवाककया एवं पोिैण्ड दे श भारत के िौह अयस्कों का
आयात करते हैं। भारत से इन अयस्कों का र्नयाथत हजल्दया, पाराद प, मरमगाओ, मैंगिोर एवं ववशाखापट्टनम
बन्दरगाहों से होता है ।
- भारत में ववश्व के सकि भण्डार का 20 प्रर्तशत िौह अयस्क ववद्यमान है।
- िौह अयस्क के र्नक्षेप प्रायः सभी राययों में लमिते हैं। भारत के कुि भण्डार का अधधकतर दहस्सा उड़ीसा,
झारखण्ड, छत्तीसगढ़, कनाथटक एवं गोवा राययों में है।
- छत्तीसगढ़ में बैिाडडिा एवं रािहरा की खदानें तर्ा उड़ीसा की ककरुबुरू खदान में उत्खनन का कायथ र्नयाथत को िक्ष्य
बनाकर ककया िा रहा है ।
मैंगनीि
भारत के सकि मैगनीि अयस्क उत्पादन का िगभग एक चौर्ाई भाग र्नयाथत ककया िाता है।
िौह एवं इस्पात के र्नमाथण में मैगनीि अयस्क एक महत्त्वपूणथ अवयव है। मैगनीि की उपयोधगता शुष्क बैटररयों के
र्नमाथण में, फोटोग्राफी में, चमड़ा और माधचस उद्योगों में महत्त्वपूणथ होती है। भारत में सकि मैगनीि अयस्क के
िगभग 85 प्रर्तशत भाग की खपत धातुकमीय उद्योगों में हो िाती है।
ववतरण
मैगनीि उत्पादन के प्रमुख क्षेत्र उड़ीसा, मध्य प्रदे श, महाराष्ट्र, कनाथटक एवं आन्ध्र प्रदे श के अन्तगथत आते हैं। भारत
के 78 प्रर्तशत से ययादा मैगनीि अयस्क के भण्डार महाराष्ट्र के नागपुर तर्ा भण्डारा जििों से िेकर मध्य प्रदे श के
बािाघाट एवं र्छन्दवाड़ा जििों तक फैि पट्ट में लमिते हैं। परन्तु ये दोनों रायय सकि उत्पादन में क्रमशः 12 एवं
14 प्रर्तशत का ह योगदान दे ते हैं। शेष 22 प्रर्तशत मैगनीि भण्डार का ववतरण उड़ीसा, कनाथटक, गुिरात,
रािस्र्ान, गोवा एवं आन्ध्र प्रदे श के अन्तगथत अवजस्र्त र्नक्षेपों में है।
उड़ीसा भारत में मैगनीि अयस्क के उत्पादन में शीषथ पर है िहााँ भारत के कुि उत्पादन का 37 प्रर्तशत उत्पादन
होता है । इस रायय में उपिब्ध मैगनीि अयस्क के र्नक्षेप भारत के कुि भण्डार का 12 प्रर्तशत है। मैगनीि की
प्रमुख खदानें सुन्दरगढ़, रायगढ़, बोिांगीर, क्योंझर, िािपुर एवं मयूरभंि जििों में है ।
कनाथटक में मैगनीि अयस्क के र्नक्षेप लशमोगा, धचत्रदग
ु थ, तुमकूर तर्ा बेल्िार जििों में हैं। छुटपुट र्नक्षेप बीिापुर,
धचकमंगिूर एवं धारवाड़ जििों में पाए गए हैं। यद्यवप कनाथटक में मैगनीि अयस्क के भण्डार काफी कम हैं (भारत

के कुि भण्डार का 6 प्रर्तशत) कफर भी अयस्क का उत्पादन कनाथटक में भारत के मैगनीि उत्पादन का 26 प्रर्तशत
होता है ।
आन्ध्र प्रदे श में मैगनीि का उत्पादन होता है िो काफी अच्छा है । यद्यवप यहााँ मैगनीि अयस्क के र्नक्षेप काफी कम
है। गोवा, झारखण्ड एवं गुिरात में भी मैगनीि अयस्क के र्नक्षेप पाए िाते हैं।
धाण्ववक अलौह खननज
अिौह खर्नि वे होते हैं जिनमें िोहा का अंश नह ं होता। इनके अन्तगथत धाजत्वक खर्निों में शालमि हैं- सोना, चााँद ,
ताम्बा, दटन, सीसा, िस्ता इत्यादद। ये सभी धाजत्वक खर्नि काफी महत्त्वपूणथ हैं क्योंकक इनसे उपिब्ध धातु दै र्नक
िीवन में बहुत काम में आती है। वैसे भारत इन खर्निों की उपिजब्ध एवं भण्डार के मामिे में काफी कमिोर तर्ा
अभावग्रस्त है।
(i) बॉक्साइट
यह एक अिौह खर्नि र्नक्षेप है जिससे अल्युलमर्नयम नामक धातु र्नकाि िाती है । भारत में बॉक्साइट खर्नि के
इतने र्नक्षेपों के भण्डार हैं कक भारत अल्युलमर्नयम के मामिे में आत्मर्नभथर रह सकता है। अल्युलमर्नयम धातु, िो
बॉक्साट खर्नि से र्नकािा िाता है, का बहुमुखी उपयोग वायुयान र्नमाथण, ववद्युत उपकरणों के र्नमाथण, बबिि के
घरे िू उपयोगी सामान बनाने में, घरे िू साि-सयिा के सामान के र्नमाथण में होता है । बॉक्साइट का उपयोग सफेद
सीमेन्ट के र्नमाथण में तर्ा कुछ रासायर्नक वस्तुएाँ बनाने में भी होता है । भारत में सभी प्रकार के बॉक्साइट का
अनुमार्नत भण्डार 3037 लमलियन टन है।
ववतरण
बॉक्साइट के र्नक्षेपों का ववतरण दे श के अनेक क्षेत्रों में है। परन्तु ववपुि रालश में इसके भण्डार महाराष्ट्र, झारखण्ड,
मध्य प्रदे श, छत्तीसगढ़, गुिरात, कनाथटक, तलमिनाडु, गोवा एवं उत्तर प्रदे श में अवजस्र्त हैं।
बॉक्साइट के महत्त्वपण
ू थ र्नक्षेप झारखंड रायय के पिामू, रााँची एवं िोहरदरगा जििों में अवजस्र्त हैं।
गि
ु रात में बॉक्साइट अयस्क के र्नक्षेपों की भण्डारण रालश दे श के कुि भण्डार के 12 प्रर्तशत भाग के बराबर तर्ा
इतनी ह प्रर्तशत की भागीदार उत्पादन के मामिे में है। बॉक्साइट के र्नक्षेप इस रायय के भावनगर, िूनागढ़ तर्ा
अमरे ि जििों में अवजस्र्त हैं।
मध्य प्रदे श तर्ा छत्तीसगढ़ को लमिाकर दे खा िाए तो दे श के कुि बॉक्साइट भण्डार के 22 प्रर्तशत भाग तर्ा
उत्पादन में दे श के कुि उत्पादन का 25 प्रर्तशत भाग इन दोनों राययों के र्नक्षेपों से प्राप्त होते हैं। इन राययों में
बॉक्साइट के तीन प्रमुख क्षेत्र हैं - अमरकंटक पठार में सरगुिा, रायगढ़ एवं बबिासपुर जििे; मैकि पवथत श्रंख
ृ िा के

अन्तगथत बबिासपुर, दग
ु थ, (दोनों छत्तीसगढ़) एवं मण्डिा, शहडोि व बािाघाट जििे (मध्यप्रदे श) तर्ा कटनी जििा
(मध्यप्रदे श) सजम्मलित हैं।
महाराष्ट्र में बॉक्साइट अयस्क के र्नक्षेप तर्ा उत्पादन अपेक्षाकृत कम है । बॉक्साइट के महत्त्वपूणथ र्नक्षेप कोल्हापुर,
रायगढ़, र्ाणे, सतारा एवं रत्नाधगर जििों में अवजस्र्त हैं।
कनाथटक के बेिगाम जििे के उत्तर-पजश्चमी भूभाग में बॉक्साइट के र्नक्षेप लमिते हैं। दे श के पूवी घाट क्षेत्रों में
बॉक्साइट के ववशाि र्नक्षेप अवजस्र्त हैं। इस घाट क्षेत्र में उड़ीसा तर्ा आन्ध्र प्रदे श के क्षेत्र आते हैं।
अन्य क्षेत्रों में िैसे तलमिनाडु के सािेम, नीिधगर तर्ा मदरु ै जििों में; उत्तर प्रदे श के बााँदा जििे में बॉक्साइट अयस्क
के महत्त्वप
ू णथ र्नक्षेप लमिते हैं।
भारत ववलभन्न दे शों को बॉक्साइट का र्नयाथत करता है। प्रमख
ु आयातक दे श हैं- इटि , यन
ू ाइटे ड ककं गडम, पजश्चम
िमथनी एवं िापान।
- बॉक्साइट अयस्क से अल्युलमर्नयम धातु र्नकाि िाती है।
- बॉक्साइट अयस्क का उपयोग सफेद सीमेन्ट तर्ा कुछ रसायनों के र्नमाथण में भी होता है।
- बॉक्साइट र्नक्षेप के ववशाि भण्डार झारखण्ड, छत्तीसगढ़, मध्यप्रदे श, महाराष्ट्र, कनाथटक, तलमिनाडु, गोवा और
उत्तर प्रदे श में लमिते हैं।
अधाण्ववक खननज
भारत में अधाजत्वक खर्निों की संख्या बहुत अधधक है ककं तु इनमें से कुछ ह खर्निों का व्यापाररक एवं वाणणजययक
दृजष्ट से महत्त्व है। ये हैं- चूना पत्र्र, डोिोमाइट, अभ्रक, कायनाइट, लसलिमनाइट, जिप्सम एवं फास्फेट। इन
खर्निों का उपयोग ववलभन्न उद्योगों में िैसे सीमेन्ट, उवथरक, ररफ्रैक्टर ि तर्ा बबिि के अनेक उपकरणों एवं
सामानों के र्नमाथण में होता है। इस पाठ में हम अभ्रक एवं चूना-पत्र्र के बारे से अध्ययन करें गे।
(i) अभ्रक
भारत पूरे ववश्व में शीट अभ्रक का अग्रणी उत्पादक दे श है । अब तक इिेजक्ट्रकि एवं इिेक्ट्रॉर्नक उद्योगों में अभ्रक
अपररहायथ रूप से उपयोग में आते रहे हैं। परन्तु िब से इसका कृबत्रम रूप से संश्िेवषत ववकल्प आ गया, अभ्रक
खर्नि का उत्पादन एवं र्नयाथत दोनों कम हो गया है।
ववतरण

भारत में यद्यवप अभ्रक का ववतरण बहुत ववस्तत
ृ है, ककन्तु उत्पादन की दृजष्ट से महत्त्वपूणथ र्नक्षेप तीन प्रमुख
पट्दटयों में सीलमत हैं। ये तीनों पट्दटयां बबहार, झारखण्ड, आन्ध्र प्रदे श एवं रािस्र्ान राययों के अन्तगथत आती हैं।
बबहार और झारखण्ड में उत्तम कोदट के रूबी अभ्रक का उत्पादन होता है । बबहार, झारखण्ड के लमिे-िुिे भूभाग में
अभ्रक खर्नि की र्नक्षेप पट्ट का ववस्तार पजश्चम में गया जििा से हिार बाग, मुाँगेर होते हुए पूवथ में भागिपुर जििे
तक फैिा हुआ है।
इस पट्ट के बाहर क्षेत्र में धनबाद, पािाम,ू रााँची एवं लसंहभूलम जििों में भी अभ्रक के भण्डार लमिते हैं। बबहार,
झारखण्ड लमिाकर भारत के कुि अभ्रक उत्पादन का 80 प्रर्तशत भाग उत्पाददत करते हैं। आन्ध्र प्रदे श में अभ्रक की
पट्ट नैिरू जििे में ह सीलमत है। रािस्र्ान दे श का तीसरा प्रमुख अभ्रक उत्पादक रायय है। इस रायय में अभ्रक
खर्नि से सम्पन्न पट्ट का ववस्तार ियपुर, उदयपुर, भीिवाड़ा, अिमेर और ककशनगढ़ जििों में फैिा है। यहााँ
अभ्रक की गुणवत्ता अच्छी नह ं है। इन तीन प्रमुख पट्दटयों के अिावा अभ्रक के र्नक्षेप केरि, तलमिनाडु एवं मध्य
प्रदे श में भी लमिते हैं।
भारत में अभ्रक खर्नि का उत्खनन र्नयाथत के लिये होता रहा है । भारत के अभ्रक का आयात प्रमुख रूप से (कुि
र्नयाथत का 50 प्रर्तशत भाग) संयुक्त रायय अमेररका करता रहा।
(ii) चूना पत्र्र
इस खर्नि का उपयोग कई प्रकार के उद्योगों में होता है । सीमेन्ट उद्योग भारत के 76 प्रर्तशत चूने पत्र्र के खपत
का प्रमुख स्रोत है। चूने के पत्र्र की खपत िौह इस्पात उद्योग में 16 प्रर्तशत और रासायर्नक उद्योगों में 4 प्रर्तशत
होती है । शेष 4 प्रर्तशत उवथरक, कागि, शक्कर, फेरो-मैगनीि उद्योगों में खप िाता है।
ववतरण
मध्य प्रदे श में चूना पत्र्र के कुि भण्डार का 35 प्रर्तशत अंश पाया िाता है । दस
ू रे उत्पादक रायय में छत्तीसगढ़,
आन्ध्र प्रदे श, गुिरात, रािस्र्ान, कनाथटक, तलमिनाडु, महाराष्ट्र, दहमाचि प्रदे श, उड़ीसा, बबहार, झारखण्ड,
उत्तराखण्ड और उत्तर प्रदे श है। शेष चन
ू ा पत्र्र के भण्डार के अंश असम, हररयाणा, िम्मू कश्मीर, केरि एवं मेघािय
राययों में है। कनाथटक में कुि भण्डार का 10 प्रर्तशत उत्पादन होता है । इस खर्नि के र्नक्षेप कनाथटक में बीिापुर,
बेिगाम और लशमोगा जििों में लमिते हैं। आन्ध्र प्रदे श में इसके र्नक्षेप ववशाखापट्टनम, गुन्टूर, कृष्णा, कर मनगर,
एवं आददिाबाद जििों में लमिते हैं। उड़ीसा के सन्
ु दरगढ़ जििे, बबहार के रोहतास जििे तर्ा झारखण्ड के पिामू जििे
में भी चूने के पत्र्र के भण्डार हैं।
समस्याएँ

खर्नि उत्खनन से कई प्रकार की समस्याएाँ उत्पन्न होती हैं। इनमें से प्रमुख समस्याएाँ इस प्रकार हैं (क) खर्निों का तीव्रता से समापन
खर्निों के अर्नयंबत्रत दोहन से बहुत से महत्त्वपूणथ खर्नि पूणथ समाजप्त के कर ब पहुाँचने वािे हैं। अतः इनके संरक्षण
तर्ा न्यायसंगत एवं वववेकपूणथ उपयोग की अत्यंत आवश्यकता है।
(ख) पाररजस्र्र्तकीय समस्याएाँ
खर्निों के उत्खनन ने कई गंभीर पयाथवरणीय समस्याओं को प्रस्तुत ककया है । सबसे प्रमख
ु समस्या कृवष भूलम के
काफी बड़े-बड़े क्षेत्र खनन कक्रयाओं से प्रभाववत तर्ा कृवष भूलम पर खनन से र्नकािे अनुपयोगी पत्र्रों को अधधभार
स्वरूप फैिा दे ने पर पण
ू थतः अकृष्य एवं अनुपयक्
ु त हो गए। इसके अर्तररक्त खदानों में कायथ प्रारं भ करने से पूवथ
अधोसंरचना बनाने में प्राकृर्तक वानस्पर्तक सम्पदाओं का ववनाश हो िाता है।
इससे उत्पन्न कई समस्याएाँ िैसे बार-बार बाढ़ प्रभाववत होना, अपवाह क्षेत्र में अवरोध उत्पन्न होने से पानी का इधरउधर िमाव मच्छरों का आश्रय स्र्ान बनते हैं, जिससे मिेररया िैसे संक्रामक बीमाररयााँ फैिने की प्रबि
सम्भावनाएाँ बनती हैं। पहाड़ी क्षेत्रों में खनन कायथ से भूस्खिन बार-बार होता है जिससे िीव-िन्तु, पशु-सम्पदा तर्ा
मानवों की िान-माि की हार्न होती है । कई खदानों में, खनन श्रलमकों को बहुत ह खतरनाक माहौि में काम करना
पड़ता है । कोयिे की खदानों में आग िगने से अर्वा पानी भर िाने से सैकड़ों श्रलमकों को िान गंवानी पड़ती है। कई
खदानों में कभी-कभी ववषैि गैस अचानक लमि िाने से कई श्रलमक मर िाते हैं।
(ग) प्रदष
ू ण
बहुत से खर्नि उत्पादक क्षेत्रों की गर्तववधधयों से िि तर्ा वायु का प्रदष
ू ण आस-पास के क्षेत्रों में फैि िाता है जिससे
कई प्रकार की स्वास््य सम्बन्धी आपदाएाँ उत्पन्न हो िाती हैं।
(घ) सामाजिक समस्याएाँ
खर्निों की नई खोिों से स्र्ानीय िोगों का ववस्र्ापन होता है। चाँकू क बहुत से िनिातीय क्षेत्रों में खर्निों की प्रचुरता
पाई िाती है, अतः उनके ववकास एवं दोहन होने पर सवाथधधक प्रभाव िनिार्तयों पर पड़ता है। इन क्षेत्रों के
औद्योगीकरण से इन िनिार्तयों की आधर्थक जस्र्र्त, इनके िीवन मूल्यों एवं िीवनयापन करने के तौर-तर कों पर
बहुत बुरा प्रभाव पड़ता है।
संसाधनों का संरक्षण

घटते साधनों की दर्ु नया में यह परम आवश्यक है कक खर्नि संसाधनों का न्यायसंगत उपभोग वतथमान पीढ़ द्वारा
ककया िाये ताकक भावी पीढ़ प्राकृर्तक उपहारों से वंधचत न हो िाये। इसलिये संसाधन की उपिजब्धयों की पूणथ सुरक्षा
अर्त आवश्यक है।
खर्नि संसाधनों का संरक्षण र्नम्नलिणखत युजक्तसंगत उपायों द्वारा संभव है(क) पन
ु रुद्धार
िहााँ तक सम्भव हो सभी प्रकार से प्रयास ककया िाना चादहये जिनसे ववलभन्न खर्निों का पुनरोद्धार हो सके। सुदरू संवेदन प्रववधधयों के प्रयोग से नए-नए क्षेत्रों में खर्नि-र्नक्षेपों के पाए िाने की संभावनाओं की पहचान की िा सकती
है।
(ख) पन
ु ः चक्रण
इस प्रकक्रया से तात्पयथ उत्पादन प्रकक्रया में खर्निों के पुनः उपयोग से है। यर्ा (i) अनुपयोगी कागि, धचर्ड़ों, उपयोग
की हुई बोतिें, ट न, प्िाजस्टक के कचरों का पुनः चक्रण कर कागि, समाचार पत्र के कागि, प्िाजस्टक व कांच के
बतथन, डडब्बा बनाने के लिये दटन आदद का उत्पादन ककया िा सकता है । यह प्रकक्रया िि एवं ववद्युत की खपत को
प्रभावी तर के से कम करती है। ऐसे कदम वन संपदा के कम होने की प्रकक्रया को धीमा कर सकते हैं। (ii) पुरानी
मशीनों, वाहनों, औद्योधगक उपकरणों के उपयोग के बाद इन्हें कास्ट व िोहे में पररववथतत कर इनसे नए उत्पाद
बनाए िाते हैं।
(ग) प्रर्तस्र्ापन
प्रौद्योधगकी के बढ़ते ववचार से तर्ा नई िरूरतों के बढ़ने से खर्निों के उपयोग में कई पररवतथन आए हैं। िैसे पेट्रोरासायर्नक उद्योग से उत्पन्न प्िाजस्टक ने पारम्पररक पीति या लमट्ट के घड़ों को प्रर्तस्र्ावपत कर अपनी िगह
बना ि । यहााँ तक कक अब ऑटोमोबाइि उद्योग में कार, स्कूटर के ढााँचे में प्रयुक्त इस्पात की िगह प्िाजस्टक ने िे
रखी है। तााँबे की पाइप की िगह प्िाजस्टक पाइप उपयोग में आने िगी।
(घ) अधधक कौशियक्
ु त उपयोग
खर्निों को िंबी अवधध तक संरक्षण करने से खर्निों के अधधक कौशियुक्त उपयोग बहुत मददगार साबबत हुए हैं।
इसलिये आिकि खर्नि संसाधनों का बड़ी कुशिता से उपयोग होने िगा है। बतौर उदाहरण आि बािार में ययादा
शजक्तशाि इंिीर्नयररंग तर्ा र्नमाथण प्रकक्रयाओं से मोटरगाडड़यााँ अधधक क्षमता एवं गर्त वाि लमिनी िगी हैं।
ऊजाा संसाधन

आधर्थक ववकास तर्ा िीवन को सुख सुववधा से सम्पन्न करने में ऊिाथ एक आवश्यक र्नवेश के रूप में महत्त्वपूणथ
योगदान दे ती है। ऊिाथ संसाधन के बबना आधुर्नक िीवन की कल्पना करना संभव नह ं िगता। ददन-प्रर्तददन ऊिाथ
की खपत बढ़ती ह िा रह है। ऊिाथ अपने ववलभन्न रूपों में भारत में उपिब्ध हैं।
ऊजाा के स्रोत एवं उनके वर्गीकरण
ऊिाथ के कई स्रोत हैं। इन स्रोतों को लभन्न-लभन्न प्रकार से वगीकृत ककया िाता है । वगीकरण का एक प्रकार है, जिसमें
ऊिाथ को वाणणजययक तर्ा अवाणणजययक स्रोतों के रूप में ववभाजित ककया िा सकता है । ग्रामीण क्षेत्रों में आि भी
िोग मानवीय श्रम या श्रम शजक्त, पशु शजक्त, गोबर, फसिों के अपलशष्ट भागों का उपयोग ऊिाथ के स्रोत के रूप में
करते हैं, क्योंकक ये वस्तुएाँ आसानी से और सस्ते में उपिब्ध होती हैं। इन्हें कम िागत के ऊिाथ संसाधन कह सकते हैं।
इसके ठीक ववपर त ऊिाथ के स्रोत जिनका शहर क्षेत्रों में प्रयोग होता है वे मूितः वाणणयय प्रधान होते हैं। इनमें
शालमि हो सकते हैं कोयिा, पेट्रोलियम, प्राकृर्तक गैस, रसोई गैस एवं बबिि । इन सभी साधनों को वाणणजययक
ऊिाथ स्रोत कहते हैं। परं तु कुछ समय से ग्रामीण इिाकों में भी पररदृश्य बदिता निर आ रहा है।
ऊिाथ संसाधनों को दस
ू रे आधार पर भी वगीकृत ककया गया है, िो मूितः स्रोतों की सिीवता पर आधाररत हैं। िैसे
खर्नि संसाधनों में कोयिा, पेट्रोलियम, प्राकृर्तक गैस, रे डडयोधमी खर्नि इत्यादद सभी एक र्नजश्चत समय के
पश्चात समाप्त हो िाएाँगे, परन्तु इसके ववपर त प्रवाह िि, सूरि की ककरणें, पवन, समुि िहरें , गरम िि के
झरने, बायोगैस इत्यादद ऊिाथ के ऐसे स्रोत हैं िो अक्षय हैं, ये समाप्त या नष्ट नह ं होते। ऊिाथ के इन स्रोतों से प्राप्त
ऊिाथ प्रदष
ू णमुक्त होती है।
ऊिाथ के खर्नि स्रोतों में कोयिा, पेट्रोलियम, प्राकृर्तक गैस शालमि है। इन सभी खर्निों में र्छपी ऊिाथ वास्तववक
रूप में सूयथ द्वारा प्राप्त ऊिाथ का एकबत्रत रूप में अंश ह है िो अश्मीभूत हो गए। इन खर्निों को इसीलिये िीवाश्म
ईंधन भी कहा िाता है। दस
ू रे प्रकार को रे डडयोधमी या आजण्वक खर्नि कहा िाता है, इनसे प्राप्त ऊिाथ प्रदष
ू ण यक्
ु त
होती है ।
खर्निों के अिावा ऊिाथ के अन्य स्रोत हैं- प्रवाह िि, सूयथ, पवन, यवार एवं गरम पानी के झरने। इनसे प्राप्त ऊिाथ
प्रदष
ू ण मुक्त होती है ।
- ऊिाथ स्रोतों का एक और वगीकरण परम्परागत और गैर-परम्परागत स्रोतों के आधार पर भी ककया िाता है ।
परम्परागत स्रोतों में कोयिा, पेट्रोलियम, प्राकृर्तक गैस इत्यादद आते हैं। गैर-परम्परागत स्रोतों में सय
ू थ, पवन, यवार,
गरम झरने एवं बायोगैस इत्यादद सजम्मलित हैं।

- ईंधन की िकड़ी, गोबर तर्ा फसिों के अपलशष्ट पदार्थ इत्यादद सभी परम्परागत या गैर-वाणणजययक ऊिाथ के स्रोत
कहिाते हैं।
- कोयिा, पेट्रोलियम, प्राकृर्तक गैस, िि-प्रपात एवं यूरेर्नयम, र्ोररयम (आजण्वक खर्नि) इत्यादद परम्परागत
स्रोत के अन्तगथत आते हैं।
ववद्यत
ु का बढ़ता उत्पादन एवं उपभोग
ववद्युत ऊिाथ का बहुमुखी एवं सुववधािनक रूप है । िब ववद्युत के उत्पादन में कोयिा, पेट्रोलियम अर्वा प्राकृर्तक
गैस का उपयोग होता है तब इसे 'ताप ववद्युत' कहते हैं। प्रवाहमय ििस्रोत से उत्पन्न शजक्त को 'िि-शजक्त' या
िि ववद्यत
ु कहते हैं। इसके अर्तररक्त ववद्यत
ु उत्पादन आजण्वक खर्निों के ववखण्डन से भी ककया िाता है। जिसे
परमाणु-बबिि कहते हैं। यह भी ताप ववद्युत का ह एक रूप है, परं तु इसका स्रोत लभन्न है तर्ा इसके लिये उच्च
ववकलसत तकनीक की आवश्यकता होती है ।
ताप ववद्युत स्रोत
ताप ववद्युत के प्रमुख स्रोत कोयिा, डीिि एवं प्राकृर्तक गैस है जिनका प्रयोग ववद्युत उत्पादन में होता है । ताप
ववद्युत ह दे श में बबिि की आपूर्तथ में सबसे अधधक योगदान करती है। ववद्युत उत्पादन के अधधष्ठावपत संयंत्रों से
ताप ववद्युत की क्षमता, ििववद्युत से तीन गुना अधधक है। 2004-2005 में ताप ववद्युत का योगदान 80,903 मे
...
) का िगभग 60 प्रर्तशत र्ा। सन 1975 में राष्ट्र य ताप
ववद्युत र्नगम (एन
...
के अन्तगथत कोयिे पर आधाररत 13 सुपर ताप ववद्युत पररयोिनाएाँ तर्ा 7 गैस/िव ईंधन
पर संचालित संयंत्र चि रहे हैं।
वषथ 2004-2005 में एन
...
वक्सथ), खोपोि , भोिा, भीरा, पुनाथ, वैतणाथ, पैर्ोन, भटनागर बीड
आन्ध्र प्रदे श
र्नचि सीिेरू, ऊपर सीिेरू, मचकुन्द, र्निाम सागर, नागािुथन सागर, श्रीसैिम (कृष्णा नद )
कनाथटक
तुंगभिा, सारावती, कालिन्द , महात्मा गांधी (िोग ििप्रपात), भिा, लसवसमुिम (कावेर ), लशमसापुरा, मुनीराबाद,
लिंगनामक्की
केरि
इडडक्की (पेररयार), सबर धगर , कुट्दटआद्द , शोियार सेंगुिम, पल्ि वासि, कल्िाड, नेररयामंगिम,
पराम्बीकुिम, अलियार, पोररंगि, पोर्नयार
तलमिनाडु
पैकरा, मेट्टूर, कोडयार, शोियार, अलियार, साकरपट्ट , मोयार, सुरूलियार, पापनासम।

परमाणु शण्तत
भारत ने यूरेर्नयम व र्ोररयम िैसे परमाणु खर्निों से ऊिाथ उत्पादन करने की प्रौद्योधगकी ववकलसत कर ि र्ी।
परमाणु शजक्त को उत्पन्न करने के लिये परमाणु ररएक्टर की स्र्ापना हे तु बहुत बड़ी मात्रा में पूाँिी र्नवेश के सार्
उच्च कोदट की तकनीकी सुववज्ञता की आवश्यकता होती है । भारत में परमाणु शजक्त का कुि उत्पाददत शजक्त (सभी
स्रोतों से) में 2 प्रर्तशत का योगदान है । परन्तु आगामी भववष्य में परमाणु शजक्त ऊिाथ का उद यमान स्रोत लसद्ध)
होगा। िब भववष्य में ऊिाथ के अन्य स्रोत िैसे कोयिा, पेट्रोलियम इत्यादद समाजप्त की कगार पर आ िायगें , यह
शजक्त के पूरक स्रोत के रूप में भी कारगर लसद्ध होगा।
परमाणु शजक्त कायथक्रम वपछि शताब्द के पााँचवें दशक में प्रारं भ ककए गए और अगस्त 1948 में टाटा परमाणु ऊिाथ
आयोग की स्र्ापना एक शीषथ संस्र्ान के रूप में की गई िो परमाणु कायथक्रमों पर र्नणथयात्मक गर्तववधध का
संचािन करता है । परन्तु इस ददशा में प्रगर्त परमाणु ऊिाथ संस्र्ान की ट्राम्बे में 1954 में स्र्ापना के बाद ह हो
सकी। इसी संस्र्ान को 1967 में एक नया नाम ''भाभा परमाणु शोध केन्ि'' (बाकथ) ददया गया। भारत का सवथप्रर्म
परमाणु शजक्त केन्ि (320 मेगावाट शजक्त) मुम्बई के पास तारापुर में 1969 में स्र्ावपत ककया गया। इसके बाद
परमाणु ररएक्टर 'रावत भाटा' (300 मेगावाट) कोटा (रािस्र्ान), किपक्कम (400 मेगावाट) तलमिनाडु, नरोरा
(उत्तर प्रदे श), कैगा (कनाथटक) एवं काकरापारा (गुिरात) में भी स्र्ावपत हुए। इस प्रकार वतथमान में परमाणु शजक्त का
उत्पादन 10 इकाइयों से िोकक 6 केन्िों में अवजस्र्त हैं, से हो रह हैं। परमाणु ईंधन एवं भार िि की आवश्यकताओं
की आपूर्तथ क्रमशः ''परमाणु ईंधन संयंत्र समूह'' हैदराबाद (आंध्र प्रदे श) तर्ा 'भार िि संयंत्र' वडोदरा (गुिरात) से की
िाती है।
परमाणु शजक्त के उत्पादन की प्रकक्रया िदटि एवं िोणखम भर है। िरा सी चूक अर्वा सावधार्नयों के पािन में भूि
बहुत बड़ा हादसा पैदा कर सकती है जिससे संयंत्र के पररवेष एवं आस-पास के क्षेत्रों में भार तबाह तर्ा हिारों िोगों
की िानें भी िा सकती हैं। इसलिये परमाणु शजक्त केन्िों की सुरक्षा के कठोर उपायों की र्नतान्त आवश्यकता है ।
ववद्युत उवपादन के स्रोतों के आधार पर क्षेत्रीय वर्गीकरण
िि-ववद्यत
ु प्रधान क्षेत्र: इस क्षेत्र के अन्तगथत शालमि राययों में कनाथटक, केरि, दहमाचि प्रदे श, उत्तराखण्ड, िम्मूकश्मीर, मेघािय, नागािैंड, बत्रपुरा और लसजक्कम रायय आते हैं। ये रायय कोयिा खर्नि क्षेत्रों से काफी दरू जस्र्त है
परन्तु यहााँ की भौगोलिक पररजस्र्र्तयां िि-ववद्युत शजक्त उत्पादन में यर्ेष्ठ सहायक हैं।
ताप-शजक्त प्रधान क्षेत्र: इस क्षेत्र में सजम्मलित रायय हैं- पजश्चम बंगाि, झारखण्ड, बबहार, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदे श,
गि
ु रात, उत्तर प्रदे श, महाराष्ट्र, असम, ददल्ि , हररयाणा और पंिाब। इनमें से अधधकांश राययों में कोयिे के अपार
भण्डार हैं जिनका उपयोग ववद्युत ऊिाथ के उत्पादन में होता है । पंिाब, हररयाणा, उत्तर प्रदे श, बबहार में यद्यवप

कोयिा भण्डार के क्षेत्र नह ं हैं कफर भी इन राययों को रे िवे िाइनों द्वारा सीधी पहुाँच उपिब्ध है। ये रायय आिकि
ऊिाथ के स्रोतों में ववववधता िा रहे हैं।
परमाणु-शजक्त प्रधान क्षेत्र: रािस्र्ान ह एक मात्रा रायय है िो इसके अन्तगथत आता है। इस रायय में पचास
प्रर्तशत से ययादा वाणणयय ऊिाथ परमाणु शजक्त पर आधाररत है। यह इसलिये कक इस रायय में िि तर्ा कोयिा
दोनों का अभाव है ।
ऊजाा के र्गैर-परम्परार्गत स्रोत
ऊिाथ के परम्परागत स्रोतों में कोयिा, खर्नि तेि, गैस आदद आते हैं िो धीरे -धीरे समाप्त होते िा रहे हैं। िि
ववद्यत
ु ऊिाथ भववष्य की बढ़ती बबिि की मांगों की आपर्ू तथ अकेिे नह ं कर सकती है । इसलिये ऊिाथ के अन्य
वैकजल्पक स्रोतों की खोि एवं ववकास करने की आवश्यकता प्रबि होती िा रह है । सूयथ, पवन, यवार य िहरें , िैववक
अपलशष्ट, गरम िि के झरने ऐसे ह कुछ महत्त्वपूणथ स्रोत हैं जिन्हें ऊिाथ शजक्त के वैकजल्पक स्रोत के रूप में ववकलसत
ककया िा सकता है। इन्हें ह ऊिाथ के गैर-परम्परागत स्रोत कहा िाता है। ये सभी गैर-परम्परागत स्रोत बार-बार
नवीकृत ककए िा सकते हैं। ये सभी स्रोत प्रदष
ू णमुक्त हैं।
सौर ऊिाथः प्
ृ वी के लिये सूयथ ह प्रार्लमक रूप से सभी प्रकार की ऊिाथ का स्रोत है । सूयथ ह सवाथधधक सिीव एवं
सशक्त एवं प्रत्यक्ष रूप से उपिब्ध होने वाि शजक्तयों का केन्ि है। भारतवषथ उष्ण कदटबन्धीय क्षेत्र में आने वािा
ववशाि दे श है िहााँ प्रचुर सौर-प्रकाश प्रर्तददन िम्बे समय तक लमिता रहता है । यहााँ पर असीलमत संभावनाएं हैं
जिसके अन्तगथत बहुत कम िागत में सौर ऊिाथ को ववद्युत शजक्त के रूप में ववकलसत कर सकते हैं।
सौर ऊिाथ को सोिर फोटो वोजल्टक (एस
...
84 फीसद , नालभकीय ऊिाथ की 1
...
09 फीसद और नवीकरणीय ऊिाथ की 21
Title: Geography notes
Description: Hii my self dinesh chauhan